आज सोशल मीडिया का युग है लेकिन लोग जहाँ इस मीडिया से 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर अपनी राय तो रखती ही हैं लेकिन कुछ से अधिक लोग देश-विरोधी स्लोगन देते रहते हैं कुछ लोग सोशल मीडिया के द्वारा 'फतवा' भी जारी करते , देखे पाये गये हैं । कुछ दिन पहले एक 'साइलेंट-वीडियो' में एक बेटी ने युद्ध को गलत माना और कहा -- मैं एक ऐसी दुनिया में रहना चाहती हूँ, जहां और कोई गुरमेहर कौर न हो, जो कि अपने पापा को मिस करें लेकिन एक पापा को पकिस्तान फाँसी देने पर अड़ा है लेकिन यहाँ क्यों चुप है आप ? कुलभूषण जाधव को भूल गयी आप ? उनके भी बच्चे है वे भी किसी के बच्चे है !! तो फिर आप सिर्फ बातों से युद्ध का मैदान क्यों खड़ी कर रही थी और यहाँ आप चुप हो !! यानि क्या यह पब्लिसिटी का बहाना था ? जहाँ एक ओर 'माननीय प्रधानमंत्री' 'डिजिटल-क्रांति' से देश को जोड़ रहे है वही दूजी ओर इस तरह की घटनाओं से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान तो देश का ही हो रहा है लेकिन फ़ायदा 'दुश्मन-देश' उठा लेते है। मैं पाठकनामा के माध्यम से यह कहना चाहती हूँ कि 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर कृपया 'उल-जलूल' पोस्ट न किया करें !
यूरेका यूरेका
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