"नक्सलियों के नाम : एक कलमकार का खुला खत"
माना आप भूमिहीन हो, पर अपने ही रक्षा-प्रहरी को मारकर कैसी शान्ति मिलती है आपको ! देश में सिर्फ आप ही गरीब नहीं हो, हम जैसी शिक्षिका, रचनाकार भी गरीब हैं । हम कलम घिसते हैं, किन्तु आप हथियार उठाते हो । अगर ज्यादा ही मारने का शौक है, तो बॉर्डर पर जाकर दुश्मनों को मारो, उन्हें घर के अंदर तक जाकर हरका दो, तब न जाने तुम्हारी मर्दानगी । देश के अंदर छिपे आतंकवादियों को खदेड़-खदेड़ कर मारो । कल ही तो हमने बापू के चंपारण यात्रा की सौवीं सालगिरह मनायी । वह बापू, जिसने अहिंसा का पाठ पढ़ाये थे । छत्तीसगढ़ में 2 दर्जन से अधिक CRPF को मारकर तुम्हारा कौन-से कलेजे में ठंडक पहुंची ! इसबार भी बिहार ने शहीदों की आगवानी की । ये शहीद जीवित रहते भी देशसेवा में लीन थे, भूखे-प्यासे ! तुम इन्हें मारकर कितने ही घर उजाड़े, तुम्हें तो पता होगा नहीं ? कितनी माताएं की कोख खाली हुई, कितने बच्चे अनाथ हुए और कितने ही विधवा हो गई । भले ही वे तुम्हारे प्रत्यक्ष रक्त- सम्बन्ध नहीं थे, परंतु भारत माँ की संतान होने के नाते वे तुम्हारे भाई अवश्य थे ! अपनी भाभी व भावज का घर उजाड़ कर कुछ मिला तो बोलो ! उत्तर सिफर में होगा । तुम्हारी गरीबी का कोई उपहास नहीं उड़ाता, परंतु तुम देश के मुख्यधारा में आओगे, तब ही न तुममें विकास पनपेंगे ।
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